चंबा(एम एम डैनियल/ब्यूरो चीफ),
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में लोहड़ी का पर्व वर्तमान समय में प्राचीन परंपराओं के रूप में मनाया जाता है। आज भी चंबा में इस पर्व को खूनी लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। वहीं चंबा का लोहड़ी पर्व खूनी लोहड़ी से भी विख्यात है। गौर हो कि चंबा सदर में 13 अन्य मढ़ियां (महिला) हैं। मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 जनवरी की रात हो सुराड़ा वार्ड के लोग राज मढ़ी की प्रतीक मशाल को हर मढ़ी में लेकर जाते हैं। जबकि चौतड़ा वार्ड से बजीर मढ़ी स्थित है। पर्व का आगाज राज मढ़ी और बजीर मढ़ी में विधिवत पूजा अर्चना शुरू होता है। राजमढ़ी में शिव पूजन एवं 18 से 20 फीट लंबी त्रिशूल आकार का मुशारा (मशाल) पूजा शुरू होता। जिसके पश्चात राज नौण नामक स्थल पर राजमढ़ी एवं बजीर मढ़ी में आपसी मिलाप दोनों ओर जलते मुशायरा की टक्कर से होता है। जिसके बाद राजमढ़ी मुशारा सदर में स्थित एक के बाद एक मढ़ी में गाड़कर अपना कब्जा करते है। कब्जा करने को लेकर दोनों क्षेत्रों के लोगों में मारपीट होती है। वहीं इतना ही नहीं रियासत काल में लोग डंडों और धारदार हथियारों से एक-दूसरे पर हमला करते थे। रियासत काल में इस दौरान अगर मारपीट में किसी भी जान भी चली जाए तो एक खून माफ होता था। राज मढ़ी के लोग इसे रूप में मानते हैं जबकि महिला मढ़ी वाले इसे कब्जे में रूप में देखते हैं। इसके चलते परंपरा धीरे-धीरे प्रतीक रूप लेती जा रही है। इनसे निपटने को भारी संख्या में पुलिस बल की तैनात रहती है। चंबा मुख्यालय में लोहड़ी पर्व पुलिस की देखरेख में होता है। हालांकि पुलिस दल के चौकसी के चलते वित्त वर्ष लोहड़ी पर्व किसी भी खूनी झड़प न होने से शांति पूर्वक संपन्न हुआ और लोगों ने एक दूसरे को बधाई देने सहित मकर संक्रांति पर खिचड़ी खा पर्व का लुफ्त उठाया।
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