
सन 1927 में आज ही के दिन रामप्रसाद बिस्मिल को सुबह साढ़े छः बजे गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई थी | उनके साथ उनके दो साथी ठाकुर रोशनसिंह और अश्फाकुलाह खान को भी सूली पर चढ़ाया गया | फांसी वाले दिन बिस्मिल ने सुबह जल्दी उठकर कसरत की , वेद मन्त्रों का पाठ किया और फांसी के तख़्त पर खड़े होकर घोषणा की – “मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ” | और इसके साथ ही 30 बरस के रामप्रसाद बिस्मिल भारतवासियों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हो गए |
यूं तो इस देश को आजाद करवाने के लिए लाखों युवाओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है | लेकिन जो सम्मान बिस्मिल को मिला वो कम ही लोगों को मिला | इसका एक कारण ये था कि बिस्मिल पिस्तौल के साथ कलम चलाना भी जानते थे | उन्होंने पढ़ा भी बहुत और लिखा भी बहुत | उनकी आत्मकथा आज भी नौजवानों में खासी लोकप्रिय है | इसके अलावा ‘सरफरोशी की तमन्ना’ नमक गजल का एक वर्जन भी उन्होंने लिखा था जो उस समय क्रांतिकारियों का मन्त्र बन चूका था |
बिस्मिल का सामाजिक जीवन आर्यसमाज से शुरू हुआ | शारीरिक और आध्यामिक विकास के सूत्र उन्होंने आर्यसमाज से ही सीखे जो बाद में क्रान्ति के रास्ते में भी उनके काम आये | सन 1916 के लखनऊ अधिवेशन में उन्होंने और उनके साथियों ने लोकमान्य तिलक की शहर में भव्य शोभा यात्रा निकाली जिसके बाद वो नौजवानों के लोकप्रिय नेता बन चुके थे |
इसके बाद शुरू हुई क्रान्ति की यात्रा जो फांसी के फंदे पर जाकर ही रुकी | इस दौरान बिस्मिल ने क्रन्तिकारी संगठन बनवाये , पर्चे छपवाए , अंग्रेजों की सम्पति पर डाका डाला जिसमें काकोरी षड्यंत्र प्रमुख है | बाद में बिस्मिल ने अपने साथियों के साथ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नमक संगठन का गठन किया जिसमें बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी शामिल हुए | बाद में अपने ही एकसाथी की गद्दारी के कारन बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया गया | काकोरी षड्यंत्र में उनपर मुकदमा चला जिसमें उन्हें और उनके दो साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई | लेकिन बिस्मिल की फांसी के बाद क्रान्ति की ज्वाला देश में और भड़क उठी थी और ठीक बीस साल बाद अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पडा था |
फांसी के फंदे को देखकर बिस्मिल ने ये शेर कहा था
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
बाकी ना मैं रहूं ना मेरी आरजू रहे
जब तक की तन में जान रगों में लहू रहे
तेरा ही जिक्र तेरी ही जुस्तजू रहे