विकल्प सिंह ठाकुर
भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था | उनका पालन पोषण गोकुल में ग्वालों के बीच हुआ | उनकी रासलीलाओं की साक्षी वृन्दावन की गलियां रही | वर्तमान में ये दोनों स्थान उतर प्रदेश में आते हैं | इसके बाद किन्हीं परिस्थितियों के कारण वासुदेव को अपनी प्रजा समेत द्वारका जाना पडा था | ये द्वारकापुरी आज के गुजरान में जलमग्न हुई है | यही कारण है कि भारत के मध्य और पश्चिमी भाग में भगवान् कृष्ण के प्रति सर्वाधिक आस्था दिखाई देती है |
सुदूर हिमालय की तलहटी में बसे हिमाचल प्रदेश से हालाँकि भगवान् श्रीकृष्ण का सीधा सम्बन्ध नहीं रहा | किंतु फिर भी इस पहाड़ी सूबे के कई हिस्सों में भगवान् कृष्ण के प्राचीन मंदिर बने हुए हैं | जन्माष्टमी का पर्व भी यहाँ के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है | लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि दुनिया का सबसे बड़ा श्रीकृष्ण मंदिर भी हिमाचल प्रदेश में ही स्थित है |
हम बात कर रहे हैं किन्नौर जिले के निचार उपमंडल की रोराघाटी में स्थित भगवान् श्रीकृष्ण के मंदिर की | ये मंदिर समुन्द्र तट से करीब बारह हजार फीट की उंचाई पर युला कांडा झील के बीचोंबीच स्थित है | लोक मान्यता है कि ये मंदिर पांडवों के द्वारा वनवास के वर्षों में बनाया गया था | हालाँकि हिमाचल प्रदेश के बहुत से हिस्सों में पांडवों से जुड़े मंदिर और दुसरे चिन्ह पाए जाते हैं | उनमें से बहुतों को विद्वान लोग संदिग्ध मानते है |
बहरहाल अगर आपको दुनिया के सबसे ऊँचे श्रीकृष्ण मंदिर के दर्शन करते हैं तो आपको रोरा घाटी तक पहुँचने वाला पैदल ट्रैक करना पड़ेगा | युला ख़ास नामक स्थान से शुरू होने वाला ये ट्रैक करीब बारह किलोमीटर का है और बेहद खूबसूरत है | इसके बीच में देवदार के जगल भी आते हैं और हरे घास की जुब्बड़ीयाँ भी | अंत में युला कांडा झील पहुंचकर ये ट्रैक समाप्त हो जाता है | जिसके बीचों बीच स्थित है ये प्राचीन मंदिर | इस मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है जिसके बारे में मान्यता है कि बुशहर रियासत के केहरी सिंह नामक राजा द्वारा शुरू किया गया था |
जन्माष्टमी के अवसर पे आज भी स्थानीय और बाहरी श्रद्धालू बड़ी संख्या में यहाँ भगवान् श्री कृष्ण के दर्शन करने आते हैं | जन्माष्टमी पर एक और रोचक परम्परा का यहाँ पर निर्वहन किया जाता है | श्रद्धालु अपनी परम्परागत हिमाचली टोपी उलटी करके योला कांडा झील में फेंक देते हैं | ऐसा माना जाता है कि जिसकी टोपी तैरते हुए झील के दुसरे छोर पर पहुँच जाती है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है | और जिसकी टोपी पहले ही डूब जाती है उसका साल अच्छा नहीं गुजरता | इस अवसर पर लोग झील की परिक्रमा करते हैं और उसमें डुबकी भी लगाते हैं | झील के पानी को बीमारियाँ दूर करने वाला माना जाता है | इस दौरान अठारह प्रकार के फूलों से भगवान् कृष्ण की पूजा की जाती है | यदि आप भगवान् कृष्ण के भक्त हैं और जन्माष्टमी के अवसर पर वृन्दावन या मथुरा जाने की सोच रहे हैं तो एक बार किन्नौर के इस अनोखे मंदिर के दर्शन का विचार अवश्य कीजिये
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