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तो क्या सिर्फ गरीबों के लिए है चालान ?

विकल्प सिंह ठाकुर

शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में एक नया मंजर देखने को मिला । विभिन्न मुद्दों पर एक दूसरे से नोक झोंक करते रहने वाले हमारे माननीय विधायक एक दूसरे की हां में हां मिलाते दिखाई दिए । जो हिमाचल प्रदेश की राजनीति को फॉलो करते हैं वो जानते हैं की ये मंजर कभी कभार ही देखने को मिलता है ।

मामला था फतेहपुर के विधायक भवानी पठानिया के चालान का । हुआ ये कि वीरवार को शिमला में एक न्यायिक अधिकारी ने विधायक पठनिया की गाड़ी का चालान कर दिया था । कुल पांच हजार का चालान उनकी गाड़ी के सामने लगी फ्लैग रॉड को लेकर किया गया । विधायक ने सदन में ये मुद्दा उठाते हुए कहा कि खुद उस मजिस्ट्रेट की गाड़ी के सामने भी नेम प्लेट लगी हुई थी । भवानी पठानिया के ये मुद्दा उठाते ही दूसरे विधायकों ने भी अपने अपने शिकवे बयां करने शुरू कर दिए । लब्बेलुबाब ये था कि जब न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारी नेम प्लेट और झंडियाँ लगाकर घूमते हैं तो सिर्फ विधायकों के लिए ही मोटर व्हीकल एक्ट लागू क्यों होना चाहिए । मंतव्य ये था कि विधायकों को भी झंडी लगाकर घूमने की इजाजत मिलनी चाहिए । हैरानी तो तब हुई जब भाजपा के विधायकों ने भी मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन करने की मांग को अपना समर्थन दिया । नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी लगे हाथ अपने चालान का पुराना किस्सा सुना दिया । मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने भी ज्यूडिशियल एक्टिविज्म पर चिंता जताई और विधायिका के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक कमेटी के गठन की घोषणा की ।

पाठकों को बता दें कि मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार प्रदेश में मुख्यमंत्री , राज्यपाल और मुख्य न्यायधीश के अलावा कोई भी गाड़ी में झंडी नहीं लगा सकता । केंद्र सरकार द्वारा ये संशोधन देश में वीआईपी कल्चर समाप्त करने के लिए लाया गया था । लेकिन शायद हमारी अफसरशाही और चुने हुए जनप्रतिनिधियों को ये बात रास नहीं आ रही ।

सवाल ये उठता है कि क्या हमारे जनप्रतिनिधि कानून से ऊपर है ? अगर एक विधायक का चालान हो गया तो क्या इसमें इतना हंगामा करने की जरूरत क्यों है ? जबकि रोजाना ना जाने कितने मध्यम और निम्न मध्यमवर्ग के लोगों के चालान होते हैं । गरीब ऑटो वाले और टैक्सी वाले कई कई बार अपनी पूरी दिहाड़ी चालान भुगतने में खर्च कर देते हैं । प्रदेश में नो पार्किंग के चालान धड़ल्ले से होते हैं जबकि हमारे ज्यादातर शहरों में पार्किंग की सुविधा नहीं होती । चंडीगढ़ जैसे शहरों में तो हिमाचल की गाड़ियों को देखते ही उनके चालान किए जाते हैं । लेकिन इन बातों पर कभी प्रदेश की विधानसभा में चर्चा नहीं होती ।

इसके बावजूद भी प्रदेश का आम नागरिक अपने चालानों को चुपचाप भुगतता है । ये सोचकर कि चलो आखिर पैसा अपनी सरकार के पास ही जा रहा है । उसे लगता है कि इस पैसे से वो हमारे ही विकास के काम करेगी । लेकिन अगर उसी सरकार में बैठे लोगों का चालान हो जाए तो वो विधानसभा में इस तरह का मंजर देखने को मिलता है । ऐसे में लाखों प्रदेशवासियों के मन में एक ही सवाल आता है – क्या चालान सिर्फ गरीबों के लिए है !

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