चंबा : ऐतिहासिक सूही मेला का हुआ विधिवत आगाज

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चंबा (एम एम डैनियल/ब्यूरो चीफ),

ऐतिहासिक तीन दिवसीय सूही मेला रानी सुनयना देवी के चिन्ह को सूही मढ़ में मंदिर परिसर में स्थापित करने के साथ ही आरंभ हो गया। मंगलवार को पिंक पैलेस से रानी सुनयना के चिन्ह को राजपरिवार की कन्या व नगर परिषद चंबा अध्यक्ष नीलम नैय्यर, ईओ राखी कौशल की अगुवाई में भव्य शोभायात्रा के साथ सूहीमढ़ स्थित मंदिर ले जाया गया। शोभायात्रा में सदर विधायक नीरज नैयर ने इस ऐतिहासिक पर्व में बतौर मुख्यातिथि शिरकत कर सूही माता को शीश नवाजे। वहीं सूही मढ़ में माता के चिन्ह की स्थापना के साथ ही श्रद्धालुओं का मंदिर में पहुंचने का सिलसिला आरंभ हो गया है। गौर हो कि छठी शताब्दी में चंबा रियासत की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिदा जमीन में दफन हो गई थीं। इसका उल्लेख साहिल वर्मन के पुत्र युगाकर वर्मन के एक ताम्रलेख में भी मिलता है। कहा जाता है कि चंबा नगर की स्थापना के समय वहां पर पानी की बहुत समस्या थी। इस समस्या को दूर करने के लिए चंबा के राजा ने नगर से करीब दो मील दूर सरोथा नाला से नगर तक कूहल द्वारा पानी लाने का आदेश दिया। राजा के आदेशों पर कूहल का निर्माण कार्य किया गया और कर्मचारियों के प्रयासों के बावजूद इसमें पानी नहीं आया। कथा के अनुसार एक रात राजा को स्वप्न में आकाशवाणी सुनाई दी जिसमें कहा गया कि कूहल में तभी पानी आएगा जब पानी के मूल स्त्रोत पर रानी या एक पुत्र को जीवित जमीन में दफना दिया जाए। राजा इस स्वप्न को लेकर काफी परेशान रहने लगा। इस बीच रानी सुनयना ने राजा से परेशानी की वजह पूछी तो उसने स्वप्न की सारी बात बता दी। लिहाजा रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने की बात कह डाली। हालांकि राजा और प्रजा नहीं चाहती थी कि रानी पानी की खातिर अपना बलिदान दें, लेकिन रानी ने अपना हठ नहीं छोड़ा और लोकहित में जिदा दफन होने के लिए सबको मना भी लिया। कहा जाता है कि जिस वक्त रानी पानी के मूल स्त्रोत तक गई तो उसके साथ अनेक दासियां, राजा, पुत्र और हजारों की संख्या में लोग भी पहुंच गए थे। मलूण/बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर एक बड़ी क्रब तैयार की गई और रानी साज-श्रृंगार के साथ उसमें जब क्रब में प्रवेश कर गई तो पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता है कि क्रब से जैसे-जैसे मिट्टी भरने लगी, कूहल में भी पानी चढ़ने लग पड़ा। चंबा शहर के लिए आज भी इसी कूहल में पानी बहता है, लेकिन वक्त के साथ-साथ शहर में अब नलों के जरिए इस कूहल का पानी पहुंचाया जाता है। इस तरह चंबा नगर में पानी आ गया और राजा साहिल वर्मन ने रानी की स्मृति में नगर के ऊपर बहती कूहल के किनारे रानी की समाधि बना दी। इस समाधि पर रानी की स्मृति में एक पत्थर की प्रतिमा विराजमान है, जिसे आज भी चंबा के लोग विशेषकर औरतें अत्यन्त श्रद्धा से पूजती हैं। प्रति वर्ष रानी की याद में 15 चैत्र से पहली बैशाखी तक मेले का आयोजन किया जाता है जिसे सूही मेला कहते हैं। मेले का नाम रानी सुनयना देवी के पहले अक्षर से रखा लगता है। इस मेले में केवल स्त्रियां और बच्चे ही जाते हैं। महिलाएं रानी की प्रशंसा में लोकगीत गाती हैं और समाधि तथा प्रतिमा पर फूल की वर्षा की जाती है। वहीं जिला चंबा में एक मेला ऐसा भी होता है जहां केवल महिलाएं और बच्चे ही उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। जिला चंबा में आयोजित होने वाले स्थानीय सूही मेले में प्राचीन आस्था और इतिहास पर अगर नजर डालें तो यह सत्य है। लेकिन बदलते युग और रिवाजों के वर्तमान समय मेले में पुरुष भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते है। लेकिन की ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग आज भी मौजूद है जो चंबा प्राचीन आस्था संस्कृति को आज भी संजोए हुए है जो कि रानी सुनयना देवी की मेले आगाज में पिंक पैलेस से निकलने वाली शोभायात्रा में तो शामिल होते हैं लेकिन राजनौण पहले विश्राम स्थल तक ही शोभायात्रा में शामिल होकर वापिस लौट आते हैं। इस बात का इतिहास साक्षी है कि चंबा की रानी सुनयना के बलिदान की गाथा समेटे इस मेले में पुरुषों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।

सूमी मेले के तीन दिनों तक माता के चिन्ह को श्रद्धालुओं के दर्शनों हेत सूहीमढ़ व मलूण/बलोटा गांव स्थित थानों में रखा जाएगा। जहां सूही माता के प्रति आस्था रखने वाले शहर के विभिन्न समुदाय के लोग माता के दरबार में हाजिरी भरकर पूजा-अर्चना करेंगे। मंगलवार को सूही मेले के पहले दिन मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं उपस्थिति दर्ज करवाई। उधर, सूहीमढ़ में गद्दी समुदाय की महिलाओं का घुरेही नृत्य मेले का मुख्य आकर्षण केंद्र बना रहा। बुधवार को सूहीमढ़ से रानी सुनयना देवी की शोभायात्रा अपने अगले पड़ाव मलूण यानि बलिदान स्थल/समाधि स्थल के लिए विधिवद्व पूजा-अर्चना के पश्चात रवाना होगी। जबकि वीरवार को मलूण में बड़ी जातर एवं पूजा-अर्चना के पश्चात रानी सुनयना का चिन्ह पुन: विधिवत् रूप से शोभायात्रा के रूप में पिंक पैलेस बनगोटू सांयकाल वापिस पहुंचने सहित ही मेला समाप्त हो जाएगा।

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