शिमला: हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के लिए “जल संरक्षण और सतत जल प्रबंधन के लिए स्प्रिंगशेड प्रबंधन” विषय पर आयोजित पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का पिछले कल समापन हो गया । समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए जगदीश चंदर, प्रधान मुख्य अरण्यपाल – हरियाणा ने कहा कि स्प्रिंगशेड और वॉटरशेड दोनों जल से संबंधित हैं, लेकिन वे कुछ मायनों में भिन्न हैं। वाटरशेड एक भूमि क्षेत्र है जो पानी को जलाशय में बहाता है, जबकि स्प्रिंगशेड वाटरशेड और जलभृतों की एक प्रणाली है जो झरनों को पानी की आपूर्ति करती है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा वाटरशेड पर बहुत ही सराहनीय कार्य किया जा रहा है जबकि स्प्रिंगशेड को सहेजने की दिशा में भी ध्यान नहीं दिया जाना समय की मांग है । डॉ. चंदर ने कहा कि झरने, भूजल की दर्शनीय अभिव्यक्ति, भारत के लाखों पर्वतीय क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो लगभग 200 मिलियन लोगों, विशेष रूप से भारतीय हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और मध्य भारत में, का भरण-पोषण करते हैं। वे आर्थिक रूप से शुद्ध पानी प्रदान करते हैं और नदी के प्रवाह, जैव विविधता और कृषि और औद्योगिक विकास को बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के दीर्घकालिक अस्तित्व और लाखों लोगों की भलाई को सुनिश्चित करने के लिए सतत विकास प्रथाओं और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण की आवश्यकता है। स्प्रिंगशेड प्रबंधन, स्प्रिंगशेड संरक्षण और कायाकल्प के लिए महत्वपूर्ण है, इसके लिए स्थानीय ज्ञान के साथ वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता होती है। पिछले एक दशक में, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्पिंगशेड विकास और प्रबंधन को संबोधित करने के लिए कई पहल की गई हैं। हालाँकि, इन विविध संस्थाओं के बीच डेटा संग्रह और प्रबंधन पद्धतियों में मानकीकरण की कमी बनी हुई है। यह असंगति राष्ट्रव्यापी स्प्रिंगशेड प्रबंधन प्रयासों को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रथाओं के साथ स्थानीय ज्ञान की संपदा को संश्लेषित करते हुए, स्पिंगशेड प्रबंधन के लिए एक मानकीकृत ढांचा स्थापित करना अनिवार्य है। एकजुट सहयोग और एकीकृत कार्रवाई से ही आने वाली पीढ़ियों के लिए इन अमूल्य जल स्रोतों को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रखा जा सकता है। अपने सम्बोधन के अंत में उन्होने देश के विभिन्न प्रदेशों से इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाले भारतीय वन सेवा अधिकारियों, जो मुख्य रूप से क्षेत्र में योजना बनाने की प्रक्रिया और उसके कार्यान्वयन में इनकी विशेष भूमिका रहती है, को यह महत्वपूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला को बधाई दी ।
इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए संस्थान के निदेशक, डॉ. संदीप शर्मा ने समापन समारोह के मुख्य अतिथि का स्वागत तथा अभिनंदन किया । उन्होने बताया कि संस्थान द्वारा इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने के भरसक प्रयास किए गए जबकि यह विषय उनके लिए भी एक नया विषय था । उन्होने प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहे भारतीय वन अधिकारियों से चर्चा करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम की सार्थक्ता के बारे में जानकारी प्राप्त की प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन की जानकारी प्रदान करते हुए प्रशिक्षण समन्वयक, श्री कुलदीप शर्मा, भा.से.व., अरण्यपाल ने कहा कि उनकी दृष्टि से यह एक सफल आयोजन था, जिसके माध्यम से संस्थान द्वारा प्रयास किया गया की प्रतिभागियों को स्प्रिंगशेड प्रबंधन के बारे में नामी विद्वानों के व्याख्यानों तथा साइट प्रदर्शन/ क्षेत्रीय भ्रमण के द्वारा उनका ज्ञानवर्धन करने का प्रयास किया गया । क्षेत्रीय भ्रमण के दौरान श्री मति कंचन देवी, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषदके नेतृत्व में देशभर से 27 वन सेवा अधिकारियों ने अपने परिवार सहित हिमाचल प्रदेश वन विभाग के सहयोग से एक पेड़ माँ के नाम अभियान के अंतर्गत पौधरोपण भी किया । प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागी अधिकारियों ने अपने विचार सांझा किए । उन्होंने कहा कि प्रतिभागियों से प्राप्त फीडबैक के अनुसार, यह एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम था और उन्होंने विभिन्न सत्रों और क्षेत्रीय दौरों के दौरान बहुत कुछ सीखा है, जो उनके कार्यक्षेत्र में स्प्रिंगशेड प्रबंधन गतिविधियों को लागू करते समय निश्चित रूप से उपयोगी साबित होगा।