चौरा पंचायत की बेबसी: जल विद्युत परियोजनाओं के साए में भी अंधकार में जीते लोग

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किन्नौर (सुरजीत नेगी, संवाददाता),

किन्नौर जिला के प्रथम पंचायत चौरा की यह विडंबना है कि जहां से बिजली पैदा होकर देश के कई हिस्सों को रौशन किया जाता है, वहीं उसी गांव के लोग आज भी बिजली की अखमीचौनी का सामना करने को मजबूर है। कभी रोशनी की उम्मीद में आंखें टकटकी लगाए रहती हैं, तो कभी बिना बिजली के रातें बिताने की मजबूरी उन्हें अतीत में लौटने जैसा महसूस कराती है।

स्थानीय निवासी कहते हैं कि बीस साल पहले भी बिजली व्यवस्था इतनी खराब नहीं थी। आज हालत यह है कि बिजली कब आएगी, कब जाएगी — कुछ कहा नहीं जा सकता। इस आंख मिचौनी ने स्कूली बच्चों से लेकर दुकानदारों और छोटे व्यवसायियों तक को संकट में डाल दिया है। लोगो का कहना है गांव के सामने ही 100 मेगावाट की शोरंग जल विद्युत परियोजना दिन-रात बिजली पैदा कर रही है — मगर उसका लाभ पड़ोसी राज्यों को मिल रहा है। चौरा पंचायत, जिससे जल, जमीन और संसाधन लिए गए, आज उसी विकास की चमक से दूर है।
चौरा हिरमा माता के मुखिया गोपाल भांडिया कहते हैं, “परीक्षाओं के वक्त भी हमारे बच्चे बिना बिजली के पढ़ने को मजबूर थे। ऐसा लगता है जैसे हम फिर से दशकों पुरानी जिंदगी में लौट आए हैं। विकास के नाम पर हमें केवल शोषण मिला है।”

चौरा गांव की व्यवसायी किरण नेगी की आवाज में मायूसी और बेबसी साफ झलकती है: ” उन का कहना है दुकान बिजली पर निर्भर है। बिजली नहीं हो तो सारा काम रुक जाता है। किराया निकालना तक मुश्किल हो गया है। न काम कर सकते हैं, न आराम से जी सकते हैं।” शलानी गांव के भगवान दास नेगी ने बताया कि उनके क्षेत्र के ऊपर से करछम-वांगतू (1000 मेगावाट), बासपा (300 मेगावाट), संजय (120 मेगावाट), और शोरंग (100 मेगावाट) जल विद्युत परियोजनाओं की बिजली लाइनें गुजर रही हैं। “उन्हें बिजली नहीं, सिर्फ तारों का जाल मिला है। यहां तक कि भविष्य की हवाई सेवा की संभावना भी इन लाइनों ने खत्म कर दी है। लोगो ने सरकार से मांग की है कि बस रौशनी का हक चाहिए। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें बिजली आपूर्ति स्थायी और जवाबदेह चाहिए ,,ताकि वे भी बाकी दुनिया की तरह रौशनी में सांस ले सकें।

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