राजगढ़ (निशेष शर्मा, संवाददाता),
हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक और प्राचीन मेलों में शामिल शिरगुल देवता बैसाखी मेला को अब तक राज्य स्तरीय दर्जा नहीं मिल पाया है। इस मेले का इतिहास लगभग छह दशक से भी अधिक पुराना है और यह सिरमौर जिले की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है। हर वर्ष इसे राज्य स्तरीय मेला घोषित करने की उम्मीद जताई जाती है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और सरकारों की उदासीनता के चलते अब तक यह सिर्फ जिला स्तरीय मेला ही बना हुआ है। शिरगुल देवता के नाम पर लगने वाले इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष बैसाख संक्रांति से आरंभ होकर तीन दिन तक नेहरू ग्राउंड, राजगढ़ में बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। मेले में शिरगुल देवता की पालकी की शोभायात्रा, पारंपरिक कुश्ती दंगल, सांस्कृतिक कार्यक्रम, झूले, गतका प्रदर्शन प्रमुख आकर्षण रहते हैं। इसके अलावा, व्यापारियों के लिए यह मेला आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होता है | मेले का ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद इसे राज्य स्तरीय दर्जा दिलाने के लिए कोई ठोस राजनीतिक प्रयास नहीं हुए। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के शासनकाल में यह मेला उपेक्षा का शिकार रहा। पिछले दो वर्षों से चुनाव आचार संहिता के चलते मेले में किसी मंत्री की भागीदारी नहीं हो पाई, जिससे यह मांग ठंडे बस्ते में चली गई। इस वर्ष मेले के समापन समारोह में राज्य सरकार के किसी मंत्री के शामिल होने की संभावना है। इससे स्थानीय लोगों को एक बार फिर उम्मीद जगी है कि इस बार उनकी वर्षों पुरानी मांग पूरी हो सकती है। लोगों को आशा है कि मंत्री की उपस्थिति से सरकार मेले की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझेगी और इसे राज्य स्तरीय दर्जा देने का निर्णय लेगी। मेले को राज्य स्तरीय दर्जा मिलने से इसे अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त होगी, जिससे आयोजन की भव्यता और आकर्षण में वृद्धि होगी। साथ ही, राज्य स्तरीय दर्जा मिलने से मेले का पर्यटन महत्व भी बढ़ेगा | अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस बार सरकार शिरगुल देवता बैसाखी मेले को राज्य स्तरीय दर्जा देकर स्थानीय जनता की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करती है या नहीं।