शिमला: हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने औषधीय पौधों की अच्छी पद्धतियों पर क्षमता निर्माण सह संवेदीकरण कार्यशाला विषय पर चार दिवसीय कार्यशाला का सुभारंभ 20 नवंबर, 2024 को संस्थान में किया गया । डॉ॰ वनीत जिष्टू, वैज्ञानिक-ई, विस्तार प्रभाग प्रमुख एवं प्रशिक्षण कोओर्डिनेटर/समन्वयक ने बताया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जाइका टूटू, शिमला, हिमाचल प्रदेश के सौजन्य से किया जा रहा है । इसका उद्देश्य औषधीय पौधों की अच्छी कीमतों पर क्षमता निर्माण सह संवेदीकरण तथा जड़ी बूटी सेल की जानकारी सामान्य हित समूह के सदस्यों तक पहुंचाना है ताकि वो औषधीय पौधों की खेती अपना कर आजीविका के साधनों में विविधता कर का अतिरिक्त आय के साधन विकसित कर सके । उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से वैज्ञानिक खेती करने की आवश्यकता है । औषधीय पौधों की खेती विविधिकरण एवं अतिरिक्त आय के लिए अच्छा विकल्प है और किसानो को औषधीय पौधे उगाने के लिए प्रोत्साहित किया । उन्होंने बताया कि संस्थान ने बागवानी पौधों के साथ औषधीय पौधों को अंतरवर्तीय फसल उगाने के मॉडल विकसीत किए है । जिससे किसान बागवानी फसल के मध्य बचे भाग का उपयोग औषधीय पौधों को उगाने के लिए कर सकते हैं और इन्हे उगाकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं ।
डॉ. सुशील कापटा, भारतीय वन सेवा अधिकारी, जायका, अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल (सेवानिवृत्त), हिमाचल प्रदेश ने कहा कि जायका द्वारा सामान्य हित समूह के सदस्यों हेतु जड़ी बूटी सेल का गठन किया गया है, जिसमें हितधारकों के कौशल विकास हेतु उन्हें जड़ी बूटी उगाने और उनके दोहन की जानकारी दी जा रही है । समूहों को क्षेत्रीय दौरे करवा कर उन्हें व्यवहारिक जानकारी भी दी जा रही है ।
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने प्रशिक्षुओं को बताया कि संस्थान ने रोहल रोहडू की त्रिदेव औषधीय संस्था को गुड एग्रीकल्चर प्रेक्टीसिस प्रमाण पत्र प्राप्त करने में मार्गदर्शन एवं सहायता की । उन्हें भी इसी प्रकार अपने कृषि उत्पादों का पंजीकरण करना चाहिय ताकि उत्पाद अच्छे दाम में तथा आसानी से बाज़ार में बिक सके । उन्होंने स्वयं सहयता समूह के सदस्यों को कडू और मुशकला मुश्क्बाला की वैज्ञनिक तरह से खेती करने की जानकारी दी ।
डॉ. जी.एस. गौराया, भारतीय वन सेवा अधिकारी, प्रधान मुख्य अरण्यपाल एवं हौफ़, हिमाचल प्रदेश (सेवानिवृत्त), ने कहा कि 344 औषधीय पौधे रेड डाटा बुक में दर्ज हैं जिनमें से 62प्रजातियाँ हिमाचल प्रदेश की हैं, इसके अलावा उन्होंने औषधीय पौधों की मांग और उपलब्धता के विषय में जानकारी दी । उन्होंने औषधीय पौधों का दोहन बीस भादों में करने के महत्व के बारे में चर्चा की । उन्होंने कहा कि अगर औषधीय पौधों का दोहन उनके जीवन चक्र के पूरा होने पर किया जाये तो उनमें गुण भी अधिक होंगे और उनके लुप्त होने का खतरा भी कम होगा । डॉ. अश्वनी तप्वाल, वैज्ञानिक-एफ, भा॰वा॰अ॰शि॰प॰-हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने औषधीय पौधों की पौधशाला में अर्बस्कुलर माइकोराइजा के महत्व की जानकारी दी । श्रीमती अंजु तप्वाल, आर्ट आफ़ लिविंग, शिमला ने कार्यस्थल पर तनाव के प्रबंधन के उपाय सुझाय । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में आनी, कुल्लु क्षेत्र के 18 स्वयं सहायता समूह के सदस्यों ने भाग लिया । इस अवसर पर डॉ. जोगिन्दर सिंह चौहान, कुलवन्त राय गुलशन, राजेन्द्र पाल एवं स्वराज सिंह उपस्थित रहे ।
[डॉ॰ संदीप शर्मा]
निदेशक