कौन है गुग्गा जाहर वीर जिनके नाम से मनाई जाती है गुग्गा नवमी

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विकल्प सिंह ठाकुर

भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सारी दुनिया भगवान् कृष्ण के जन्म का उत्सव मानती है | इस महापर्व को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहा जाता है | इस दिन दुनिया भर के हिंदु कृष्ण भक्ति में सराबोर हो जाते हैं | किंतु जन्माष्टमी बीत जाने के बाद भी भक्तिरस का ये प्रवाह नहीं थमता, क्यूंकि इसके ठीक अगले दिन एक ऐसे लोक देवता का जन्मदिन है जो भारत के एक बहुत बड़े हिस्से में पूजे और माने जाते हैं | हम बात कर रहे हैं गुग्गा महाराज की , जिन्हें गोगाजी चौहान , गुग्गा राणा या गुग्गा जाहर पीर भी कहा जाता है |

गुग्गा का जन्म वर्तमान राजस्थान के एक प्रतिष्ठित चौहान राजपूत कुल में हुआ था | उनके पिता ठाकुर जेवरसिंह एक छोटे से राज्य के शासक थे | कहते हैं गुग्गा पीर का जन्म गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से हुआ था | और बड़े होने पर उन्होंने गुरु गोरखनाथ से ही दीक्षा भी ली थी | गुग्गा पीर में क्षत्रिय सुलभ वीरता थी जिसका परिचय उन्होंने समय समय पर दिया | इसके अतिरिक्त गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से उन्होंने यौगिक शक्तियों का भी प्रदर्शन समय समय पर किया | कहते हैं जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया तो गुग्गा जी ने अपनी सेना के साथ उसका रास्ता रोका था | उस युद्ध में गुग्गा जी ने अपने पुत्रों सहित बलिदान दे दिया था | शरीर छोड़ने के बाद गुग्गा जी को एक लोक देवता के रूप में पूजा जाने लगा | राजिस्थान , पंजाब और हिमाचल प्रदेश में आज भी गुग्गा जी के भक्तों की संख्या लाखों में है |

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र में गुग्गा नवमी को धूम धाम से मनाया जाता है | इसका एक कारण ये है कि गुग्गा पीर को इस क्षेत्र के प्रमुख देवता शिरगुल महाराज का सहयोगी भी माना जाता है | कहते हैं कि गुग्गा राणा शिरगुल महाराज के साथ दिल्ली के कारागार से छूटकर गिरिपार आये थे | हर साल रक्षाबंधन को गुग्गा जी की छड़ी अपने स्थान से निकलकर समाज के भ्रमण पर  निकल जाती है | छड़ी के साथ निकले सेवादार घर घर जाकर लोगों को गुग्गा जी की वीर गाथाएँ स्थानीय भाषा में सुनाते हैं | लोग गुग्गाजी को हलवा और रोट का भोग चढाते हैं | क्यूंकि गुग्गाजी को सांपों का देवता भी माना जाता है इसलिए लोक सर्पदंश से रक्षा हेतु भी उनसे प्रार्थना करते हैं | श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर छड़ी वापिस अपने मंदिर में आ जाति है | उससे अगले दिन गुग्गा नवमी पर दैवीय कार्यक्रम और मेलों का आयोजन किया जाता है | इस अवसर पर श्रद्धालू खुद को लोहे की जंजीरों से पीटकर श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं | गुग्गा जी का गुर जलते अंगारों पर चलकर दैवीय शक्ति का परिचय देता है | हजारों लोग गुग्गा जी के समक्ष शीश नवानें पहुँचते हैं | इस अवसर पर गुग्गा जी के मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है |

सोचने वाली बात ये है कि राजस्थान का एक वीर क्षत्रिय योद्धा कैसे दुर्गम गिरिपार क्षेत्र का लोक देवता बन गया | इसी सवाल के जवाब में सनातन धर्म का अनूठापन छिपा है |

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