राजगढ़ (पवन तोमर/ब्यूरो चीफ),
राजगढ़ क्षेत्र अतीत से ही लोक कलाकारों का गढ़ रहा है। जिनमें अनेक प्रसिद्ध कलाकारों का सिरमौर की संस्कृति के सरंक्षण एवं संवर्धन में अहम योगदान रहा है । नए उभरते कलाकारों की श्रृंखला में सुदर्शन दिवाना की गायन प्रतिभा से कोन परिचित नहीं है । जिन्होने प्रदेश के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय, राज्य, जिला, उप मंडल तथा ग्रामीण स्तरीय मंचों पर अपनी सुरीली आवाज का जादू न बिखेरा हो। गौर रहे कि सुदर्शन दिवाना राजगढ़ के समीप शाया छबरोण के निवासी है जिन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला फागू से उतीर्ण करने बाद स्नातक और बीएएड डिग्री हासिल की है। हालांकि इन्होने संगीत में एमए 2017 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से की है । वर्तमान में सुदर्शन दिवाना डीएवी सकैंडरी स्कूल राजगढ़ में बतौर संगीत अघ्यापक कार्यरत है। बता दें कि सुदर्शन दिवाना की संगीत में उपलब्धियों की फेरिहस्त काफी लंबी है। वर्ष 2003 में ग्रीन क्लब राजगढ़ द्वारा दिवाना ने प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसी प्रकार वर्ष 2008 में हिमाचल उत्सव सोलन में राज्य स्तरीय गायन प्रतियोगिता में सुदर्शन को हिमाचली आइडल का खिताब से नवाजा गया। वर्ष 2006 में सोलन में आयोजित किशोर लत्ता नाईट में प्रथम पुरस्कार मिला। वर्ष 2013 के दौरान दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय भजन गायन प्रतियोगिता में टाॅप -10 में स्थान हासिल किया। यही नहीं वर्ष 2014 से सुदर्शन दिवाना आकाशवाणी और दूरदर्शन शिमला से कार्यक्रम देते आ रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि कोरोना काल के दौरान बच्चों की प्रतिभा को उभारने के लिए फेसबुक पर अपना मंच कार्यक्रम आरंभ किया गया। जिसमें प्रदेश भर के करीब दो सौ बच्चों ने आॅनलाईन लोक नृत्य, गायन, लघु नाटिका प्रतियोगिता में भाग लिया था। इसी प्रकार फेसबुक पर आॅनलाईन जिला स्तरीय कवि सम्मेलन भी करवाया गया। गौर रहे कि सुदर्शन दिवाना ने अबतक सात से अधिक ओडियो व विडियो गीतों की एलबम मार्किट में उतारी है जिनमें हाल ही में एकतारा विडियो एलबम लाॅच की गई है। इसके अतिरिक्त शावणी भाभीए, तुमने रूलाया, दिया राणीय, लीला नाॅन स्टाॅप, लाली नाॅन स्टाॅप, गुरू चैला इत्यादि शामिल है। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार की जीवनी पर पहला श्रद्धांजलि गीत संगीतबद्ध करके समर्पित किया गया जिसे प्रेमपाल आर्य द्वारा लिखा गया है। सुदर्शन दिवाना ने 18 से अधिक पहाड़ी गीतों को लिखकर उसे स्वयं स्वरबद्ध किया है। एक साक्षातकार में सुदर्शन दिवाना ने बताया कि बचपन से ही उन्हें गायन वादन का बहुत शौक था। फागू स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम में सदैव अव्वल आते थे। इन्होने अपनी सफलता का श्रेय यह अपने अध्यापक योगेश ममगाई और शेरजंग चैहान को दिया है। इनका कहना है कि उनके लिए संगीत ही जीवन का आधार है क्योंकि संगीत मनुष्य को संवदेनशील, कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी होने के साथ साथ आध्यात्मिकता से जोड़ता है।