चुनौतियों से भरा होगा सुखविंदर सुक्खू का कार्यकाल

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11 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के पन्द्रवे मुख्यमंत्री के रूप में सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शपथ ली | मुख्यमंत्री बनने तक का सुक्खू का सफ़र मुश्किलों से भरा रहा | एक साधारण परिवार से उठकर सूबे के मुखिया की कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं होता | चुनौतियां सत्तासीन भाजपा की तरफ से तो थी , साथ ही कोंग्रेस का एक शक्तिशाली गुट भी उनका विरोधी बना रहा | लेकिन सुक्खू इन सबसे पार पा गए | लेकिन प्रदेश की जो वर्तमान परिस्थितयां दिख रही है उनसे लगता है कि सुक्खू का आगे का सफ़र भी आसान नहीं रहने वाला |

कर्ज तले दबा है प्रदेश

विशेषज्ञों की माने तो हिमाचल प्रदेश पर इस समय करीब सत्तर हजार करोड़ का कर्ज है | पिछली सभी सरकारें इस ऋण को चुकाने में असमर्थ रही हैं | ना तो खर्चों में कटौती हुई ना ही आय बढ़ाने पर ध्यान दिया गया | सिर्फ पुराने कर्ज को चुकाने के लिए नए कर्ज लिए गए | देखना होगा कि मुख्यमंत्री के रूप में क्या सुक्खू प्रदेश को ऋणमुक्त करने के लिए कोई ठोस आर्थिक नीति लेकर आते हैं या फिर अपने परवर्तियो की तरह ही नये कर्ज लेकर सरकार चलते रहेंगे |

क्या बहाल हो पाएगी ओपीएस

ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करना कौंग्रेस के चुनावी वायदों में प्रमुख था | कोंग्रेस ने सत्ता में आने पर पहली कैबिनेट में ओपीएस बहाल करने का आश्वासन दिया था | इस कारण कर्मचारी वर्ग के एक बड़े हिस्से ने कौंग्रेस के पक्ष में बढचढ कर मतदान दिया | लेकिन फिलहाल ओपीएस बहाली की राह आसान नहीं नजर आ रहीं | हिमाचल प्रदेश पहले ही आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है | इसके अलावा राजस्थान जैसे कोंग्रेस शासित प्रदेश भी अब तक कर्म्चारितों को पुरानी पेंशन नहीं दिलवा पाए हैं | सुखविंदर सुक्खू केंद्र से तालमेल बिठाकर किस तरह अपने इन चुनावी वायदे को निभाते हैं ये देखना दिलचस्प होगा |

पार्टी के अंदर ही है चुनौतियाँ

सुखविंदर सुक्खू को पार्टी के अंदर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है | पार्टी में उनका विरोधी खेमा केन्द्रीय हाईकमान पर लगातार दबाव बनाये हुए है | बहुत सम्भावना है कि मंत्रालयों के आबंटन के समय उनका असंतोष दोबारा बाहर आ सकता है | यही कारण है कि मुख्यमंत्री सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री फूंक फूंककर कदम रख रहे हैं | मंत्रालयों के आबंटन के समय क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों के साथ उन्हें अपने पार्टी की अंदरूनी खेमेबाजी का भी ध्यान रखना पड़ेगा | हालाँकि सुक्खू कुशल संगठनकर्ता हैं और राजनीतिक संतुलन बनने में भी माहिर माने जाते हैं और इसकी झलक उनके मंत्रिमंडल में देखने को मिल सकती है |


नौकरशाही पर रखना होगा नियंत्रण

जयराम ठाकुर सरकार की एक नाकामी बेलगाम नौकरशाही भी थी | पूरे पांच साल उपर से लेकर निचले स्तर तक अफसर प्रदेश सरकार पर हावी रहे | कोविड काल में में तो नौकरशाही की मनमानी विशेष रूप से देखने को मिली | और इसका खामियाजा कहीं ना कहीं जयराम ठाकुर को चुनावों में उठाना पड़ा | सुखविंदर सुक्खू इससे पहले कभी कैबिनेट मंत्री भी नहीं रहे | अफसरों से उनका सरोकार सिर्फ विधायक के रूप में रहा होगा | एक मुख्यमंत्री के रूप में नौकरशाही को नियंत्रण में रखना भी उनके कार्यकाल की सफलता को परिभाषित करेगा |

चुनौतियां है तो अवसर भी

चाहे पर्यटन हो या शिक्षा या फिर खेती बागवानी , हिमाचल प्रदेश के पास अनंत संभावनाएं है | प्रदेश का एक बड़ा तबका उच्च शिक्षित युवाओं का है जो अपने आप में एक संपदा है | जरुरत है इस संपदा के दोहन की | सुखविंदर सुक्खू जमीन से जुड़े नेता हैं | प्रदेश की तासीर समझते हैं | चुनौतियों से निपटने के साथ साथ वो अवसरों को भुनाने में भी सक्षम साबित होंगे ऐसी उम्मीदें प्रदेशवासियों को उनसे है |

विकल्प सिंह ठाकुर (सब एडिटर चीफ)

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