राजगढ़ : हिमाचल की राजनीति में महिलाओं का गिरता स्तर : सुरेश भारद्वाज

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राजगढ़ (निशेष शर्मा/संवाददाता),

हिमाचल प्रदेश में 14वीं विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए और चुनाव के परिणामों से एक दुःख का विषय देखने को मिल रहा है जहाँ नारीवाद को बड़ावा देने की बात करते है वहीं ओर नारी को सम्मान देने की बात करते है परंतु विधानसभा में केवल एक महिला प्रतिनिधि चुनकर गई है। महिलाओ को 50%आरक्षण की बात करते है परन्तु अभी तक विधानसभा में महिलाओ को 33% आरक्षण भी नहीं दे पाए। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 68 सीटे है और 33% के मुताबिक 22 सीटे महिलाओ को आरक्षित होनी चाहिए थी। अगर आरक्षित नहीं होती तो कम से कम हर दल को 68 में से 22 महिलाओ की टिकट देने चाहिए थे। आज भी कहीं न कहीं महिलाओ का प्रतिनिधित्व खत्म होता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में आजतक केवल 42 महिलाएं ही विधायक बन पा रही है और लगभग 800 के करीब पुरुष विधायक बने है। 14वीं विधानसभा में कुल 24 महिलाओ ने चुनाव लड़ा जिसमें से केवल एक महिला (रीना कश्यप) जीती। 13वीं हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 5 महिलाएं विधायक थी और 14 वीं में केवल एक ही महिला विधायक है, 14वीं विधानसभा में बीजेपी के 6, कांग्रेस के 3, आप आदमी पार्टी के 5 उम्मीदवार थे। महिलाएं मतदान में योगदान ज्यादा है और विडंबना यह रही कि महिलाओ को जीतने में मतदाता आज भी कंजूसी वार्तते रहे है। नारीवाद की बात की जाए तो नारीवाद एक आंदोलन के साथ एक विचारधारा भी है जो विभिन्न रचनात्मक तरीकों और साधनों को अपनाकर महिलाओ की समानता, गरिमा, अधिकार मुक्ति और सशक्तिकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रतिनिधित्व करती है। 1850-1920 के बीच विश्व में महिलाओ को मताधिकार का आंदोलन चला, 1960-1980 के बीच व्यक्तिगत राजनीति का नारा और पितृसत्तात्मक समाज और राज्यो से महिलाओ की मुक्ति का लक्ष्य रक्षा और 1990 के बाद महिलाओ के साथ हो रहे नस्ल आधारित भेदभाव को खत्म करने के आंदोलन चले परंतु आज तक भी भेदभाव खत्म नहीं हुए।

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